25 October 2023

Hydrogel: जानिए, क्या होता है हाइड्रोजेल... जो सूखे से निबटने में किसानों के लिए वरदान का काम करता है! - जानें

Hydrogel: जानिए, क्या होता है हाइड्रोजेल... जो सूखे से निबटने में किसानों के लिए वरदान का काम करता है! - जानें 

What is Hydrogel इस वर्ष मानसून में हुई कम बारिश के कारण झारखंड में सूखाड़ की स्थिति बन चुकी है। किसान के लिए सबसे बड़ी चुनौती है खेत में नमी बनाए रखना। ऐसे में हाइड्रोजेल का उपयोग कर किसान कम पानी में भी फसल की पैदावर कर सकते है।

What is Hydrogel: हाइड्रोजेल क्या होता है।

What is Hydrogel वृष्टिछाया में पड़ने वाले झारखंड के गढ़वा जिला समेत कई जिलों में किसानों को अक्सर ही मानसून की बेवफाई का सामना करना पड़ता है। खेती का कार्य वर्षा पर आधारित है। इस कारण वर्षा नहीं होने पर फसलें मारी जाती हैं। इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। इससे अक्सर ही सूखाड़ की समस्या का सामना करना किसानों की नियति बन जाती है। इस वर्ष भी मानसून की दगाबाजी के कारण झारखंड में सूखाड़ की स्थिति बन चुकी है। सूखाड़ से निबटने के लिए किसानों को खेती के नए तरीकों को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में फसलों में हाइड्रोजेल का प्रयोग भी बड़ी कारगर साबित हो सकता है।

क्या होता है हाइड्रोजेल...

वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजेल का विकास ग्वार फली से किया है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक पॉलिमर है। इसमें पानी को सोख लेने की क्षमता होती है। मगर यह पानी में घुलता नहीं है। इसके अलावा हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल होता है, जिसके कारण प्रदूषण का भी खतरा नहीं रहता है । जब खेतों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल किया जाता है तो हाइड्रोजेल के दानें सिंचाई या वर्षा के दौरान अपनी क्षमता से कई गुना अधिक पानी सोख लेते हैं। जब वर्षा या सिंचाई की कमी के कारण खेतों में नमी कम होने लगती है, तब हाइड्रोजेल के दानें से पानी रिस कर खेत में नमी को बनाए रखता है।

वर्षा या खेतों की सिंचाई होने पर पुन: हाइड्रोजेल के दानें दुबारा पानी को सोख लेते हैं तथा जरूरत के मुताबिक फिर उसमें से पानी रिसकर खेत में नमी को बनाए रखता है। एक एकड़ खेत के लिए महज एक से डेढ़ किलोग्राम हाइड्रोजेल के ग्रेन्यूल की जरूरत होती है। हाइड्रोजेल की कीमत प्रति किग्रा लगभग 600 से 800 रुपये है।

हाइड्रोजेल का प्रयोग हो सकता है सूखाड़ से निबटने में कारगर

सूखाड़ से निपटने के लिए हाइड्रोजेल का प्रयोग करना एक कारगर उपाय साबित हो सकता है। खाद के दानें के आकार के हाइड्रोजेल अपने आकार का 400 गुना पानी अपने अंदर संचित कर लेता है। हाइड्रोजेल 25 दिनों तक पौधे को पानी नहीं मिलने पर भी पानी की आपूर्ति करते रहते हैं।

वैज्ञानिकों की मानें तो हाइड्रोजेल के दाने का छिड़काव खेतों में सूखा या गीला दोनों तरह से प्रयोग किया जा सकता है। इससे मिट्टी पर किसी तरह का दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता है। धान के फसल में हाइड्रोजेल का सूखा दाना रोपाई के समय खेतों में छिड़काव किया जाता है। जबकि सब्जी की खेती में पौधे की जड़ के इर्द गिर्द हाइड्रोजेल के दानें को पानी में भिंगोकर छिड़काव कर दिया जाता है।

हाइड्रोजेल खेत में मिट्टी से चिपककर उसमें मौजूद पानी या नमी को अवशोषित कर लेता है। जब खेत में लगी फसल को पानी की कमी होने लगती है, तब हाइड्रोजेल फट जाते हैं। जरुरत के अनुसार पौधों के जड़ों में पानी पहुंचाने का कार्य करते हैं। फसल की सिंचाई या फिर वर्षा होने के बाद हाइड्रोजेल फिर से पानी अवशोषित कर लेते हैं। इससे पौधे को पानी की कमी नहीं होने देता है।

वहीं पौधे की जड़ों में हवा पहुंचाने में भी मददगार होते हैं। इससे पौधे का समुचित विकास होता है तथा फसल उत्पादन में भी वृद्धि होती है। हाइड्रोजेल को वर्षा होने से पहले खेताें में जुताई कर मिट्टी में मिला दिया जाए तो अगले एक वर्ष तक उस खेत में लगने वाले हर तरह के फसल में इसका प्रभाव रहता है।

विश्व के अनेक देशाें में खेती में हाइड्रोजेल का हो रहा इस्तेमाल

वर्ष 1950 में मिस्र के वैज्ञानिकों ने सूखे से निबटने के लिए हाइड्रोजेल तैयार किया था। धीरे धीरे हाइड्रोजेल उत्पादन की तकनीक पूरे विश्व में फैल गई। हमारे देश में भी 50 से अधिक कंपनियां हाइड्रोजेल का उत्पादन करती हैं। शुरु शुरु में हाइड्रोजेल महंगी कीमत में मिलती थी। लेकिन अब इसकी कीमत मात्र 600 रुपये प्रति किग्रा है। फसल के अनुसार हाइड्रोजेल का प्रयोग किया जाता है। धान, गेहूं, मक्का आदि फसलों में चार किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से हाइड्रोजेल का छिड़काव किया जाता है। वै

ज्ञानिकों की मानें तो हाइड्रा्ेजेल के प्रयोग से फसल की सिंचाई में 60 प्रतिशत पानी का बचत किया जा सकता है। जबकि फसल में यूरिया के प्रयोग करने पर नाइट्रोजन पानी में घुलकर मिट्टी में चला जाता है। इससे पौधों को नाइट्रोजन का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। लेकिन हाइड्रोजेल के प्रयोग करने पर नाइट्रोजन को भी अवशोषित कर लेता है और पौधों को भी इसकी आपूर्ति करते रहता है।

वैज्ञानिक का क्या है कहना...

गढ़वा कृषि महाविद्यालय के सहायक प्राध्यापक सह कनीय वैज्ञानिक डा. सुधीर कुमार सिंह का कहना है कि जहां पानी की कमी है या सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हैं, वैसे जगह के लिए हाइड्रोजेल का इस्तेमाल बड़ी कारगर साबित हो सकता है।

उनका कहना है कि हाइड्रोजल जड़ों के पास मौजूद रहते हैं और धीरे-धीरे आराम से जड़ों को पानी देते रहते हैं। इसका प्रयोग कर के फसलों में कम से कम तीन-चार सिंचाई बचा सकते हैं। इसके प्रयोग से किसान की लागत में भी कमी आएगी। किसानों के लिए हाइड्रोजेल मददगार बन सकता है।