25 March 2022

25 March 2022 - Aaj ka Hindi panchang

ओम नमः शिवाय



🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷


दिनांक - - २५ मार्च २०२२ ईस्वी 


दिन - - शुक्रवार


  🌓 तिथि - - अष्टमी ( २२:०६ तक तत्पश्चात नवमी )


🪐 नक्षत्र - - मूल ( ११:४० तक तत्पश्चात उत्तराषाढ़ )


पक्ष - - कृष्ण


 मास - - चैत्र 


ऋतु - - बसंत 

,  

सूर्य - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय - - दिल्ली में प्रातः ६:२३ पर


🌞 सूर्यास्त - - १८:३१ पर 


🌓 चन्द्रोदय - - २५:५९ पर


🌓 - - चन्द्रास्त - - ११:३७ पर 


सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२२


कलयुगाब्द - - ५१२२


विक्रम संवत् - - २०७८


शक संवत् - - १९४३


दयानंदाब्द - - १९८


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 🚩‼️ओ३म‼️🚩


   🔥प्रश्न :- प्रकृति किसे कहते हैं?


  उत्तर :- सत्व , रज तथा तमो गुण इन तीन तत्वों के सामूहिक

नाम को प्रकृति कहते हैं।


   प्रश्न :- प्रकृति की क्या आवश्यकता है ?


   उत्तर :- जगत् की रचना करने के लिए कारण के रूप में इसकी आवश्यकता होती हैं ।

 जैसे घड़ा बनाने के लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है। 


   प्रश्न :- क्या प्रकृति की उत्पत्ति और विनाश कभी होता है?


   उत्तर :- प्रकृति की उत्पत्ति और विनाश कभी नहीं होता है।


  प्रश्न :- सत्वगुणरजोगुण और तमोगुण के स्वरूप को बतलाएँ?


   उत्तर :- सत्वगुण आकर्षण तथा प्रकाश को, रजोगुण चंचलता तथा दु:ख को उत्पन्न करता है 

 और तमोगुण मूढ़ता (मोह) तथा स्थिरता को उत्पन्न करता है ।


    प्रश्न :- क्या प्रकृति में जीवात्माओं को उत्पन्न करने का सामर्थ्य है?


    उत्तर :- प्रकृति में जीवात्माओं को उत्पन्न करने का सामर्य नहीं है।


    प्रश्न :- क्या प्रकृति से जीवों के समस्त दु:ख दूर हो सकते हैं ?


    उत्तर :- प्रकृति से जीवों के समस्त दु:ख दूर नहीं हो सकते हैं।


    प्रश्न :- संसार में दुःख कितने प्रकार के हैं ?


    उत्तर :- संसार में दु:ख तीन प्रकार के हैं -(१) आध्यात्मिक, (२)

आधिभौतिक, (३) आधिदैविक।


   प्रश्न :- आध्यात्मिक दुःख किसे कहते हैं ?


   उत्तर :- स्वयं की त्रुटि (मूर्खता) से प्राप्त होने वाले दुःख को आध्यात्मिक

दु:ख कहते हैं।


   प्रश्न :- आधिदैविक दुःख किसे कहते हैं। ?


   उत्तर :- बाढ़, भूकम्प ,अकाल आदि प्राकृतिक विपदाओं से प्राप्त होने वाले दु:ख को आधिदैविक दु:ख कहते हैं। 


   प्रश्न :- आधिभौतिक दुःख किसे कहते हैं। ?


    उत्तर :- अन्य पशु , पक्षी ,मनुष्य आदि जीवों से प्राप्त होने वाले दु:ख को।

आधिभौतिक दु:ख कहते हैं।


   प्रश्न :- क्या प्रकृति से अपने आप संसार बन सकता है ?


   उत्तर :- नहीं, ईश्वर की शक्ति व सहायता के बिना प्रकृति से अपने आप

संसार नहीं बन सकता है।


   प्रश्न :- क्या प्रकृति कभी चेतन हो सकती है ?


    उत्तर :- नहीं प्रकृति कभी चेतन नहीं हो सकती है।


   प्रश्न :- क्या प्रकृति की ब्रह्म से स्वतन्त्र सत्ता है या ब्रह्म ही जगत् रूप

में परिवर्तित हो जाता है?


   उत्तर :- प्रकृति की सत्ता ब्रह्म से पृथक् और स्वतन्त्र है। ब्रह्म जगत् रूप

में कभी परिवतर्तित नहीं होता है।


   प्रश्न :- सत्व, रज, तम वास्तव में गुण हैं या द्रव्य हैं ?


   उत्तर :- सत्व, रज, तम वास्तव में द्रव्य हैं। किन्तु सत्वगुण, रजोगुण

तमोगुण नाम से जान जाते हैं।


   प्रश्न :- क्या प्रकृति के समस्त परमाणु एक ही स्वरूप वाले हैं?


   उत्तर :- नहीं, प्रकृति के परमाणु अलग -अलग स्वरूप अलग-अलग गुण

कर्म-स्वभाव, रंग- रूप, आकार, भार वाले हैं।


    प्रश्न :- . क्या ईश्वर की सहायता के बिना पाँच महाभूतों से रजवीर्य

मिलने से स्वत शरीर का निर्माण हो सकता है ?


   उत्तर :- नहीं बिना ईश्वर की सहायता से पाँच महाभूतों से रजवीर्य के

मिलने से स्वत: शरीर का निर्माण नहीं हो सकता।


   प्रश्न :- प्रकृति सर्वत्र व्यापक है या नहीं ?


   उत्तर :- प्रकृति सर्वत्र व्यापक नहीं है बल्कि एकदेशी है अर्थात एकनिश्चित सीमा में फैली हुई है, किन्तु ईश्वर उसके बाहर भी

विद्यमान है।


   प्रश्न :- प्रलय अवस्था कैसी होती है ?


   उत्तर :- प्रलय अवस्था में घोर अन्धकार होता है।इस

 काल में न सूर्य

होता है, न चाँद, न पृथ्वी न कोई शरीरधारी होता है, अपितु

सर्वथा सुनसान, प्रकाशरहित अन्धकार जैसी अवस्था होती है।


    प्रश्न :- प्रलय काल कितना होता है ?


    उत्तर :- प्रलय काल ४ अरब ३२ करोड़ वर्ष का होता है।


    प्रश्न :- प्रलय काल की गणना (हिसाब ) कौन करता है ?


   उत्तर :- प्रलय काल की गणना ईश्वर करता है।


   प्रश्न :- प्रकृति के साथ जीव क्यों जुड़ता है और कब जुड़ता है ?


   उत्तर :- प्रकृति के साथ जीव अपनी अविद्या के कारण जुड़ता है तथा

सृष्टि के आरम्भ में जुड़ता है और मुक्ति से लौटने वाला जीव

सृष्टि के मध्य में भी प्रकृति से जुड़ता है।


   प्रश्न :- जीवात्मा प्रकृति के बन्धन से कब छूटता है?


   उत्तर :- जब प्रकृति और प्राकृतिक पदार्थों के प्रति आसक्ति को समाप्त


कर पूर्ण वैराग्य को प्राप्त कर लेता है अर्थात् रागद्वेष आदि

समस्त क्लेशों को समाधि लगाकर नष्ट कर देता है तब प्रकृति के

बन्धन से छूट जाता है।


   प्रश्न :- मानव जीवन को सफल करने हेतु चार पुरुषार्थ कौन-कौन

से हैं ?


   उत्तर :- (१) धर्म(२) अर्थ(३) काम, (४) मोक्ष। इन चार पुरुषार्थों

को सिद्ध कर लेना मानव जीवन को सफल करने का उपाय है।


   प्रश्न :- जैसे सुख गुण प्रकृति का है वैसे ही क्या ज्ञान गुण भी प्रकृति

का है?


   उत्तर :- नहीं ज्ञान गुण प्रकृति का नहीं है, अपितु चेतन का है।


   प्रश्न :- क्या मन रबर की तरह फैलता सिकुड़ता है?


   उत्तर :- नहीं, मन रबर की तरह फैलता-सिकुड़ता नहीं है।


   प्रश्न :- क्या सत्व, रज, तम तीनों के बिना केवल दो गुणों से कोई

पदार्थ बन सकता है ?


   उत्तर :- नहीं मात्र दो गुणों से कोई पदार्थ नहीं बन सकता। सभी पदार्थों

में तीन गुण होते ही हैं चाहे वे न्यून अधिक क्यों न हों।


   प्रश्न :- अन्न भोजन कितने प्रकार का होता है ?


   उत्तर :- अन्न तीन प्रकार का होता है-(१) सात्विक, (२) राजसिक,

(३) तामसिक।


   प्रश्न :- क्या अन्न का प्रभाव मन पर पड़ता है ?


   उत्तर :- हाँ, साविक अन्न खाने से मन शुद्ध होता है, राजसिक अन्न से

मन में चंचलता आती है और तामसिक अन्न मोह, आलस्य

आदि उत्पन्न करता है।


   प्रश्न :- मानव जीवन को स्वस्थ रखने के मूल आधार स्तम्भ कौन

कौन-से हैं?


    उत्तर :- मानव जीवन को स्वस्थ रखने हेतु मूल आधार आहार, निद्रा

और ब्रह्मचर्य का उत्तम प्रकार से सेवन करना है।


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🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🚩🕉️


🌷ओ३म् सुसारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजन इव ।हत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु ( यजुर्वेद ३४|६ )


💐अर्थ :- हे सर्वान्तर्यामिन् ! जो मन रस्सी से घोड़ो के समान अथवा घोड़ो के नियन्ता सारथी के तुल्य लोगों को अत्यन्त इधर-उधर ले जाता है, जो ह्रदय में प्रतिष्ठित, वृद्धादि अवस्था से रहित और अत्यन्त वेग वाला है, वह मेरा मन सब इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोक कर धर्म-पथ में सदा चलाया करें। 


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)   🔮🚨💧🚨 🔮


ओं तत्सत्-श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्री श्वेतवाराह कल्वे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द- षण्णवतिकोटि: अष्टक्षानि त्रिपञ्चाशत्सहस्हस्राणि द्वाविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२२ ) सृष्ट्यब्दे】【 अष्टसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७८ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल संवत्सरे रवि उत्तरायणे- वसन्त ऋतौ, चैत्र मासे , कृष्ण पक्षे, अष्टम्यां तिथौ, मूल नक्षत्रे, - कर्क लग्नोदये, अभिजित् मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ, रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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