24 March 2022

24 March 2022 - Hindi Panchang

 🕉️🙏सुप्रभात 🙏🕉️

🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷

दिनांक - - २४ मार्च २०२२ ईस्वी 


दिन - - गुरूवार 


  🌓 तिथि - - सप्तमी ( २४:१२ तक तत्पश्चात अष्टमी )


🪐 नक्षत्र - - ज्येष्ठा ( १८:४६ तक तत्पश्चात मूल )


पक्ष - - कृष्ण


 मास - - चैत्र 


ऋतु - - बसंत 

,  

सूर्य - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय - - दिल्ली में प्रातः ६:२५ पर


🌞 सूर्यास्त - - १८:३१ पर 


🌓 चन्द्रोदय - - २५:०१ पर


🌓 - - चन्द्रास्त - - १०:३८ पर 


सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२२


कलयुगाब्द - - ५१२२


विक्रम संवत् - - २०७८


शक संवत् - - १९४३


दयानंदाब्द - - १९८


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 🚩‼️ओ३म्‼️


🔥पांच माताएं!!!

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' 🌷जिज्ञासु आचार्य से प्रश्न करता है-कस्य मात्रा न विद्यते।आचार्य का उत्तर है-गोस्तु मात्रा न विद्यते।गाय का मूल्य नहीं है।गाय अमूल्य है।।-(यजु० २३/४८)


   हमारे धार्मिक ग्रन्थों में पाँच माताओं का वर्णन आता है।इन माताओं की सेवा करना,आज्ञा मानना ही हमारा धर्म है।


  सबसे प्रथम माता परमेश्वर है।इसे हम माता-पिता,बन्धु,सखा,विद्या,द्रविण तथा अपना सर्वस्व मानकर स्तुति करते हैं।परमेश्वर ने हमें पैदा किया है,वह हमारा पालक है।हमें सेन्द्रिय शरीर दिया तथा हमारे लिए भोग्या प्रकृति दी।यह पहले माता है,बाद में पिता है।ईश्वर की उपासना हमें आवागमन के बन्धन से मुक्त करती है।अतः ईश्वर की उपासना,वन्दना तथा आदेश मानना हमारा कर्त्तव्य है।


   (२)दूसरी माता वेदमाता है।हमें ये ज्ञान दुग्ध रस पिलाती है।यदि वेद न होते तो हम प्रकृति का प्रयोग करना न सीख पाते।वेद ने हमें मानव बनाया,ऋषि बनाया तथा महर्षि बनाया।वेद ने हमें विज्ञान देकर आकाश मएं उड़ाया,पानी के ऊपर चलाया तथा हमें पाशविक जीवन से उठकर मानवस्तर पर बैठाया।अतः हमें इसकी रक्षा सुरक्षा करते हुए इनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलकर वेदविहित कर्म ही करने चाहिए तथा नित्य इनका पठन-पाठन करना चाहिए।


  (३) तीसरी जननी है;जिसने हमें नौ माह तक अपने गर्भ में रखकर प्राणों के समान हमारी रक्षा की,हमें अपना दूध पिलाकर बड़ा किया तथा प्राथमिक पाठशाला बनकर हमारे ह्रदय में समाज तथा देश के प्रति बलिदान होने की भावना उत्पन्न की।इसका स्थान सर्वोपरि है।दस उपाध्यायों से आचार्य,सौ आचार्यों से पिता तथा हजारों पिताओं से माता गौरवशाली होती है।। मनु० २/१४५)


   वन जाते समय राम अपनी माता कौशल्या से वनगमन की आज्ञा मांगने गये।कौशल्या ने कहा था-जो केवल पितु आयुस ताता,तो जनि जाहु जानि बड़माता।पिता से बड़े होने के कारण ही कौशल्या ने राम के पिता दशरथ का आदेश निरस्त कर दिया था।फिर राम की और देखकर बोली-जो पितु-मातु कहेहु वन जाना,तो सुत वन शत अबध समाना।।तुलसी कृत रामायण।।

क्योंकि कौशल्या ने कभी भी कैकेयी तथा सुमित्रा को अपने से पृथक् नहीं माना था।अतः उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि यदि कैकेयी अथवा सुमित्रा में से किसी की भी आज्ञा है तो मेरी आज्ञा की आवश्यकता ही नहीं है;क्योंकि पिता की आज्ञा हो ही चुकी है तथा दोनों माताओं में से किसी ने भी आज्ञा दे दी है तो बिना किसी हिचक के वन चले जाओ।राम ने भी कभी उन दोनों माताओं को विमाता नहीं समझा था।जननी तो साक्षात् पृथ्वी की मूर्ति होती है।।मनु० २/२१६ ।।माता सदा पूज्या है।इस लोक को जीतने के लिए माता की सेवा करना ही पर्याप्त है।। मनु० २/२३३ ।।

जननी तथा जन्मभूमि तो स्वर्ग से बढ़कर होती हैं।


  (४) चौथी माँ पृथ्वी है।माता भूमि पुत्रो अहं पृथिव्या।।अथर्व०।।

इसकी गोद में हम जन्म लेते हैं।मृत्यु समय भी यह हमें अपनी शीतल गोद में आश्रय देती है।इसी की गोद में बढ़कर युवा बनते हैं,वृद्ध होते हैं तथा अन्तिम श्वास लेते हैं।हम जीवन-पर्यन्त इसकी गोद को मूत्र-पुरीष आदि से गन्दा किया करते हैं;बदले में यह हमें कभी अनाज,फल,ओषधियाँ तथा बहुमूल्य रत्नादि देती है।क्या हम इसके असंख्य उपकारों का कभी प्रत्युपकार कर सकते हैं?


(५) पाँचवी गोमाता है।सं सिंचामि गवां क्षीरम।।अथर्व०।।

महर्षि ने ६ दिनों तक बालक को प्रसूता का दूध पिलाने को कहा है।इन छह दिनों के बाद गाय या बकरी का दूध पिलावें।माता का दूध भी कभी कभी अशुद्ध हो जाता है;परिणामतः बच्चे का रोगग्रस्त होने का भय बना रहता है।गाय का दूध कभी अशुद्ध नहीं होता है इसलिए कहा गया है-

गोस्तु मात्रा न विद्यते।।(यजु० २३/४८)

गाय का दूध,पेशाब,गोबर आदि हमारे लिए हितकर है।गाय के दूध के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके दूध में किटाणु आदि नहीं आ पाते हैं।अन्य सभी पशुओं के दूध में वनस्पति के किटाणु मुख मार्ग से दूध में पहुँच जाते हैं,जो आगे चलकर रोग का कआरण बनते हैं।गाय के दूध के साथ ऐसा नहीं है।गाय के रक्त में किटाणु मिल जाते हैं परन्तु जैसे ही दूध नलिका में आता है,किटाणु रक्त तक ही रह जाते हैं तथा किटाणु रहित दूध स्तन में पहुँचकर हमें वहाँ से शुद्ध दूध मिलता है;जैसे दुग्ध नलिका के मुख पर जाली लगी हो।छन्नी लगी हो।फिल्टर लगा हो।अतः हम स्वस्थ रहते हैं।इसका दूध स्मृतिवर्धक,स्वास्थयवर्धक,हल्का तथा सुपाच्य होता है।इसीलिए बच्चों को,वृद्धों को तथा रोगियों को इसका दूध सेवन करने के लिए कहा जाता है।

गौः पुरीषं च मूत्रंच मेध्यम्।।(मनु० ५/१८)

गाय के पेशाब से ओषधियाँ बनाई जाती हैं।

आयुर्वेथ की कई एक ओषधियों में गोमूत्र अनुपान है।वेदी गाय के गोबर से ही लीपी जाती है।कहते हैं गोमूत्र स्नान से मिरगी रोग के दौरे से मुक्त हो जाता है।गौ की पवित्रता के कारण ही विवाह में तथा मृत्यु के समय गोदान की परिपाटी है (सत्पात्रों को) ।

दिलीप ने गो सेवा से ही सन्तान प्राप्त की थी।वैदिक काल में ऋषियों तथा गुरुकुलों को गायों का ही दान किया जाता था।

एक बार राजा जनक ने सर्वश्रेष्ठ ऋषि को जानने के लिए कुरु तथा पांचाल देश के विद्वानों को आमंत्रित किया।पारितोषिक के रुप में एक हजार गाय रक्खी गयी।प्रत्येक गाय के सींगों में ८ तोले १ माशे सोना बाँधा गया था।सम्वाद में याज्ञवल्क्य ने अश्वल,अतिभाग,पुज्यु,उषस्त,कहोल,गार्गी,आरुणि,उद्यालक आदि को परास्त किया तथा सभी एक हजार गायों को अपने साथ ले गये।।(बृहदार० ३/१/१)।।

जाबाल के पुत्र सत्यकाम को गौतम ऋषि के आश्रम में गायों के माध्यम से ही ब्रह्मज्ञान हुआ था।


दूध की तरह गाय का घी भी रसायन है।यह विषनाशक है।सर्प के काटने पर गाय का घी पिलाने से विष नष्ट हो जाता है।बर्र-बिच्छू आदि के विष की तो गिनती ही कहाँ है।जो इसका दूध जन्म से लेकर वार्द्धक्य तक सेवन करता रहता है उसका शरीर विषनाशक बन जाता है।


लाल रंग की गाय का दूध ह्रदय रोग तथा पाण्डुरोग(पीलिया) को दूर करता है।।(अथर्व० २/२२/१)।।


गाय का दूध रसवाहिनी नाड़ियों को खोलने वाला हऐ यह स्निग्ध तथा रसायन है।रक्त पित्तहारी,शीतल है।रस में तथा विपाक में मीठा है।जीवन दाता है।वात पित्त शामक है।।(सुश्रुत)।।


पानी पीती हुई गाय को न हाँके और न गाय की सवारी ही करे।।(मनु० ४/५९ व ७२)।।


यही एक पशु है जो माता की तरह ९ माह बाद बच्चे को जन्म देती है तथा बोलने पर माँ शब्द का उच्चारण करती है।

गौएँ सदा पवित्र होती हैं तथा सबका कल्याण करती हैं।।साम०।।

गाय घर को कल्याण का स्थान बनाती है तथा स्वामी का सौभाग्य बढ़ाती है।।गौर्वरिष्ठा चतुष्पदाम्।।म.भः आदिपर्व १/१३।।

गावो लक्ष्म्या सदा मूलं।गावोर्यज्ञस्यं मुखं।।म.भारत अनुशासन पर्व।।१३/३७ व ३९।।

विशेष जानकारी के लिए सत्यार्थ प्रकाश का १० वां समुल्लास देखें।।


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 🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🚩🕉️


🌷ओ३म् स्वस्ति पन्थामनुचरेम सूर्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताध्नता जानता सं गमेमहि। ( ऋग्वेद ५|५१|१५ )


💐अर्थ :- हम सूर्य और चन्द्रमा की भांति कल्याण-युक्त मार्ग पर चलते रहें।दानी, अहिंसाकारी, ज्ञानी जनों तथा परमात्मा से हम मेल कर सदा सुख प्राप्त करें ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)   🔮🚨💧🚨 🔮


ओं तत्सत्-श्रीब्रह्मणो द्वितीये परार्द्धे श्री श्वेतवाराह कल्वे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द- षण्णवतिकोटि: अष्टक्षानि त्रिपञ्चाशत्सहस्हस्राणि द्वाविंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२२ ) सृष्ट्यब्दे】【 अष्टसप्तत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०७८ ) वैक्रमाब्दे 】 【 अष्टवत्यधिकशततमे ( १९८ ) दयानन्दाब्दे, नल संवत्सरे रवि उत्तरायणे- वसन्त ऋतौ, चैत्र मासे , कृष्ण पक्षे, सप्तयां तिथौ, ज्येष्ठा नक्षत्रे, - मिथुन लग्नोदये, विश्वदेव मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे 

आर्यावर्तान्तर्गते.....प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ, रोग, शोक, निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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