24 March 2020

Corona का कहर - प्रकृति का पलटवार, पशु पक्षी आजाद.......इंसान पिंजरे में कैद ।




जब इंसानों द्वारा प्रकृति के बनाए नियमों के साथ खिलवाड़ किया जाता है तो उसका परिणाम भयानक होता है आज यह कोरोना वायरस की महामारी प्रकृति के साथ खिलवाड़ किए जाने के कारण ही उत्पन्न हुई है जैसा कि आप जानते हैं कि चीन में भारी तादाद में जानवरों का व्यापार किया जाता है और जानवरों को खाने में प्रयोग किया जाता है कोरोना वायरस चमगादड़ से इंसानों तक पहुंचे और यह एक महामारी बन चुका है आज दुनिया भर में यह स्थिति है कि लोग घरों में कैद है और पशु पक्षी आजाद है कभी न कभी प्रकृति अपना बैलेंस बराबर करती है इसलिए हमारे हिंदुस्तान में कहा गया है कि जियो और जीने दो ।


कोरोना कैसे आया बघेली कविता से समझे

 Kavita



चीनी चाचा दुनिया माँ

यू आतंक फैलाय दिहिन

साँप, केकड़ा, बिच्छू और चमगादड़ तक निपटाय दिहिन

पहिले आपन घर फूँकिन फिर

दुनिया पूरी जलाय दिहिन

फैलाय कोरोना दुनिया भर माँ

सबका घर बैठाय दिहिन

कोई कोऊ से मिलय जुलय न

रायता ऐसा फैलाय दिहिन

एक काम मुला नीक करिन

बस ध्वावब हाँथ सिखाय दिहिन

मुँह पर मुसिक्का बरधन वाला

अदमिन के बंधवाय दिहिन

अपनी आँखी मिच मिच कय कै

सबकी आँखी फैलाय दिहिन

दै के  कोरोना दुनिया भर का

संदेश एक दिलवाय दिहिन

प्रकृति बड़ी है हम सबसे

यू हिन्दी माँ समझाय दिहिन

चीनी चाचा दुनिया माँ

यू आतंक फैलाय दिहिन











*"धन्य है प्रभु तेरा इशारा"*


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एक झटके में घुटनों पर ला दिया समस्त मानव  👨‍👩‍👧‍👦 जाति को! 


उड़े जा रहे थे, 🦇


उड़े जा रहे थे 🦇🦇  


कोई चाँद  🌕 पर कब्जे की तैयारी कर रहा है तो 


कोई मंगल पर 🪐🪐🪐 ,  


कोई सूरज 🌝 को छूने की कोशिश कर रहा है तो 


कोई अंतरिक्ष में आशियाँ ढूँढ रहा है! 


चीन पड़ोसी देशों की जमीन हड़पने की तैयारी में था/है तो 


रूस और अमेरिका nuclear power  🌈 के नशे में पूरे विश्व को ध्वस्त करने की कोशिश में लगे हैं! 


कहीं धर्म के नाम पर नरसंहार चल रहा है तो 


कहीं जाति के नाम पर अत्याचार!


छोटे-छोटे बच्चों 🤷‍♂🤷‍♀ के बलात्कार किये जा रहे हैं! 


मानवता तो जैसे समाप्त ही हो चुकी है!


ईश्वर ने मानो इशारा किया है - 


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कि,


"मैंने तो तुम लोगों को इतनी खूबसूरत धरती पर, स्वर्ग के मानिंद, रहने के लिए भेजा था😌 


मगर, तुम लोगों ने तो इसे नर्क बनाकर रख दिया! 


मेरे लिये तो आज भी तुम सभी, एक छोटे से प्यारे से परिवार  👨‍👩‍👦‍👦  की तरह हो। 


मुझे नहीं पता कि कहाँ चीन की सीमा खत्म होकर भारत की सीमा शुरू होती है? 


कहाँ ईरान है? कहाँ इटली?? और कहाँ जर्मनी??? 


ये सीमाएँ तुम लोगों ने बनायी हैं! 


मुझे नहीं पता कि कौन ईसाई 👨‍🍳 है? कौन मुस्लिम 👦? कौन हिन्दू 👨‍🦲? कौन सिक्ख👳‍♂?कौन यहूदी 👨‍⚖? और कौन बौद्ध🧓 है? 


मुझे नहीं पता कि कौन ऊँची जाति का है? और कौन नीची जाति का? 


मैंने तो सिर्फ़ इंसान बनाया था! 


क्यों एक दूसरे को मार रहे हो? 


प्यार से क्यों नहीं रह पा रहे हो? 


जानते हो कि सब छोड़कर मेरे पास ही आना है! 


तब भी छीना-झपटी, 


नोचा-खसोटी और 


कत्ले-आम मचा रखा है!


अभी तो मैंने तीसरा नेत्र 👁 


थोड़ा सा मिच-मिचाया है! 


संभल जाओ और सुधर जाओ  🤔! 


फिर मत कहना कि मैंने मौका नहीं दिया🤷‍♂ 


एक बार वासुदेव-कुटुम्बकम की तरह रहकर तो देखो, 


सब ठीक हो जाएगा।


🙏🌹🤷‍♂🌹🙏


कृपया इस मैसेज को इतना फैलाएँ कि मानवजाति सुधर जाए।





*हम तो आदिकाल से क्वारेंटाईन करते हैं, तुम्हे अब समझ आया*


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*त्वरितटिप्पणी*


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        *आज जब सिर पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बनकर बैठ गया तब हम समझें कि हमें क्वारेंटाईन होना चाहिये, मतलब हमें ‘‘सूतक’’ से बचना चाहिये। यह वही ‘सूतक’ है जिसका भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है। जबकि विदेशी संस्कृति के नादान लोग हमारे इसी ‘सूतक’ को समझ नहीं पा रहे थे। वो जानवरों की तरह आपस में चिपकने को उतावले थे ? वो समझ ही नहीं रहे थे कि मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं ? हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है ? और जब हम समझाते थे तो वो हमें जाहिल बताने पर उतारु हो जाते । हम शवों को जलाकर नहाते रहे और वो नहाने से बचते रहे और हमें कहते रहे कि हम गलत हैं और आज आपको कोरोना का भय यह सब समझा रहा है।*





👉 *हमारे यहॉ बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मॉ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।*





👉 हमारे यहॉ कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।





👉 *हमारे यहॉ शव का दाह संस्कार करते है, जो लोग अंतिमयात्रा में जाते हैं उन्हे सबको सूतक लगती है, वह अपने घर जाने के पहले नहाते हैं, फिर घर में प्रवेश मिलता है।*





👉 हम मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं तब शुद्ध मानते हैं।





👉 *हम जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं।*





👉 हमने सदैव होम हवन किया, समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है, आज विश्व समझ रहा है, हमने वातावरण शुद्ध करने के लिये घी और अन्य हवन सामग्री का उपयोग किया।





👉 *हमने आरती को कपूर से जोड़ा, हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें।*





👉 हमने वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किये,





👉 *हमने मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियॉ लगाई जिनकी ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।*





👉 हमने भोजन की शुद्धता को महत्व दिया और उन्होने मांस भक्षण किया।





👉 *हमने भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये, और उन्होने चम्मच का सहारा लिया।*





👉 हमने घर में पैर धोकर अंदर जाने को महत्व दिया





👉 *हम थे जो सुबह से पानी से नहाते हैं, कभी-कभी हल्दी या नीम डालते थे और वो कई दिन नहाते ही नहीं*





👉 हमने मेले लगा दिये कुंभ और सिंहस्थ के सिर्फ शुद्ध जल से स्नान करने के लिये।





👉 *हमने अमावस्या पर नदियों में स्नान किया, शुद्धता के लिये ताकि कोई भी सूतक हो तो दूर हो जाये।*





👉 हमने बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया ।





👉 *हमने भोजन में हल्दी को अनिवार्य कर दिया, और वो अब हल्दी पर सर्च कर रहे हैं।*





👉 हम चन्द्र और सूर्यग्रहण की सूतक मान रहे हैं, ग्रहण में भोजन नहीं कर रहे और वो इसे अब मेडिकली प्रमाणित कर रहे हैं।





👉 *हम थे जो किसी को भी छूने से बचते थे, हाथ नहीं लगाते थे और वो चिपकते रहे।*


👉 हम थे जिन्होने दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन को महत्व दिया और वो हाथ मिलाते रहे।





👉 *हम तो उत्सव भी मनाते हैं तो मंदिरों में जाकर, सुन्दरकाण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके और वो रातभर शराब पी-पीकर।*





👉 हमने होली जलाई कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये।





👉 *हम नववर्ष व नवरात्री मनायेंगे, 9 दिन घरों-घर आहूतियॉ छोड़ी जायेंगी, वातावरण की शुद्धी के लिये।*





👉 हम देवी पूजन के नाम पर घर में साफ-सफाई करेंगे और घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन करेंगे।





👉 *हमनें गोबर को महत्व दिया, हर जगह लीपा और हजारों जीवाणुओं को नष्ट करते रहे, वो इससे घृणा करते रहे*





👉 *हम हैं जो दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं और आपके यहॉ कई सालों तक पुताई भी नहीं होती।*





👉 अरे हम तो हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं और अन्य देशो में तो एक ही कपड़े सप्ताह भर तक पहन लिये जाते हैं।





👉 *हम अतिसूक्ष्म विज्ञान को समझते हैं आत्मसात करते हैं और वो सिर्फ कोरोना के भय में समझने को तैयार हुए।*





👉 हम उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो हमारे शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। आज हमें गर्व होना चाहिऐ हम ऐसी देव संस्कृति में जन्में हैं जहॉ ‘‘सूतक’’ याने क्वारेंटाईन का महत्व है। यह हमारी जीवन शैली हैं,





👉 *हम जाहिल, दकियानूसी, गंवार नहीं*


👉 *हम सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं। आज हमें गर्व होना चाहिऐ कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है, वो अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो हमारा अनुसरण कर रहा है।* 👌👌👌





हमें भी भारतीय संस्कृति के महत्व को, उनकी बारीकियों को और अच्छे से समझने की आवश्यकता है क्योंकि यही जीवन शैली सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सबसे उन्नत हैं,


*गर्व से कहिये हम सबसे उन्नत हैं।* 👌👌





*कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहॉ हमारा।*